Saturday, 22 March 2014

हूँ इतना वीर की पापड़ भी तोड़ सकता हूँ,
जो गुस्सा आये तो कागज मरोड़ सकता हूँ,
अपनी टांगो से जो जोर लगाया मैंने,
बस एक लात में पिल्ले को रुलाया मैंने,
मेरी हिम्मत का नमूना कि जब भी चाहता हूँ,
रुस्तम ऐ हिंद को सपने में पीट आता हूँ,
एक बार गधे ने जो मुझको उकसाया,
उसके हिस्से की घास छीनकर मैं खा आया,
अपनी ताकत के झंडे यूं मैंने गाड़े हैं,
मरे चूहों के सर के बाल भी उखाड़े हैं,
-- और मेरी हिम्मत देखो--
जब अपनी जान हथेली पे मैं लेता हूँ,
हर घटना की निंदा मैं कर देता हूँ.....!
आपका मनमोहन सिंह
(नाम का प्रधानमंत्री)

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